Kabir Ke Dohe – 101+ संत कबीर के प्रसिद्ध दोहे अर्थ सहित।

Kabir Ke Dohe: कबीर दास जी हिंदी साहित्य जगत के सबसे महान संत और आध्यात्मिक कवि थे। उनके द्वारा लिखे गए ‘कबीर के दोहे’ आज

Editorial Team

Kabir Ke Dohe: कबीर दास जी हिंदी साहित्य जगत के सबसे महान संत और आध्यात्मिक कवि थे। उनके द्वारा लिखे गए ‘कबीर के दोहे’ आज भी देश भर में प्रचलित है। संत कबीर दास जी के दोहे आज भी जन-जन के लिए पथ प्रदर्शक के रूप में प्रसांगिक है। इसी के चलते आज हम अपने पाठकों के लिए इस लेख में कुछ ऐसे प्रसिद्ध एवं दिलचस्प Sant Kabir Ke Dohe का एक बड़ा संग्रह लेकर आये है जिनसे आपको जीवन से जुड़े अद्भुत ज्ञान प्राप्त होंगे।

प्रत्येक दोहे में आपको बेहद ही गहरा अर्थ देखने को मिलेगा। आशा करते है कि यह Kabir Das Ke Dohe आपको जरूर पसंद आयेंगे।

Kabir-Ke-Dohe

कबीर का जीवन परिचय (1398 ईस्वी-1518 ईस्वी)

पंद्रहवी सदी में जन्मे संत कबीरदास (Kabirdas) जी हिंदी साहित्य के भक्तिकाल के ज्ञानमार्गी शाखा के कवि है। संत कबीर जी वह भक्त थे जिन्होंने हिंदुत्व को एक नई परिभाषा दी। एक मुस्लिम परिवार में पले-बढ़े कबीरदास जी का जन्म 1398 ईस्वी (विक्रमी संवत 1455) को वाराणसी, (वर्तमान का उत्तर प्रदेश, भारत) में हुआ था।

एक ऐसा इंसान जिसे किसी तारीफ की ज़रूरत नही और जिसने बहुतो को जीने का हुनर सिखाया। उन्होंने सामाज में फैली बुराइयों, कुरीतियों, कर्मकांड, और अंधविश्वास आदि की कड़ी निंदा की। कबीर दास जी ने अपनी सारी धार्मिक शिक्षा रामानंद नामक गुरु से प्राप्त की, ये इनसे काफी प्रभावित थे।

कबीर साहेब जी द्वारा रचित मुख्य कृतियों में साखी, सबद, रमैनी आदि शामिल है। कबीर जी की भाषा सधुक्कड़ी है। इनके द्वारा रचित कृतियों में हिंदी भाषा की सभी बोलियों के शब्द देखने को मिलते है। हालांकि इनकी रचनाओं में राजस्थानी, हरयाणवी, पंजाबी, खड़ी बोली, अवधी, ब्रजभाषा के शब्दों की बहुलता है।

आईये अब आपको कबीर दास जी के कुछ लोकप्रिय एवं विस्मय दोहो के बारे में अर्थ सहित (Kabir Ke Dohe With Meaning) एवं कबीर की वाणी (Kabir Vani) बताते है।

Kabir Ke Dohe

Kabir Das Ji

कबीर के दोहे-1:

ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।।

कबीर के दोहे-2:

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय ।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ।।

कबीर के दोहे-3:

गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काको लागूं पाय
बलिहारी गुरु आपकी, जिन गोविंद दियो बताय।

कबीर के दोहे-4:

साईं इतना दीजीए, जामे कुटुंब समाए
मै भी भूखा न रहूं, साधू न भूखा जाए।

कबीर के दोहे-5:

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।।

कबीर के दोहे-6:

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।

कबीर के दोहे-7:

माटी कहे कुमार से, तू क्या रोदे मोहे ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।

कबीर के दोहे-8:

जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

कबीर के दोहे-9:

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।

कबीर के दोहे-10:

कबीर सोई पीर है, जो जाने पर पीड़
जो पर पीड़ न जानता, सो काफ़िर बे-पीर

Top 101+ Kabir Ke Dohe in Hindi

(संत कबीर के दोहे अर्थ सहित)

दोहा 1.

अर्थ:- ऐसी वाणी बोलिये जिससे सुनने वाले को अच्छा लगे, इससे दूसरों को तो अच्छा लगता ही है पर आपको भी आनंद मिलता है।

दोहा 2.

अर्थ:- कबीर कहते है की दुःख में सभी ईश्वर को याद करते है पर सुख के समय ईश्वर को हम भूल जाते है। अगर हम सुख के समय ईश्वर को याद करते रहेंगे तो दुःख आएगा ही नहीं।

दोहा 3.

अर्थ:- जब कुम्हार बर्तन बनाने के लिए मिटटी को रौंदता है तब मिटटी उसे कहती है की तू क्यों मुझे रौंद रहा है। एक दिन ऐसा आएगा जब तू मिटटी में मिल जाएगा और मैं तुझे रौंदूंगी।

दोहा 4.

अर्थ:- मानव तूझे किस बात का गर्व है? काल के हाथों में तेरे केस है। मालूम नही वो तुझे कहा मार डाले, चाहे देश हो या परदेस।

दोहा 5.

अर्थ:- कबीर कहते है की जैसे पानी के बुलबुले होते है वैसा ही मानव का अस्तित्व होता है। जैसे सुबह होते ही तारे छुप जाते है वैसे ही मानव एक दिन अदृशय हो जायेगा।

दोहा 6.

अर्थ:- अंतिम समय में मानव का शरीर लकड़ी की तरह जलता है और उसके बाल घास की तरह जल जाते है। इस तरह शरीर को नष्ट होते देख कबीर का मन उदासी से भर जाता है।

दोहा 7.

अर्थ:- इस जग का नियम है कि जिसका उदय हुआ वो अस्त भी होगा और जो फुला है वो ज़रूर मूरजाएगा। जो खड़ा है वो गिर पड़ेगा और जो आएगा उसे ज़रूर जाना होगा।

दोहा 8.

अर्थ:- कबीर कहते है की मानव झूठे सुख को सुख समझ कर मन ही मन खुश हो जाता है। देख ये सारा जगत उस मृत्यु के लिए खाने के निवाले सामान है, कुछ उसके मुँह में है तो कुछ उसकी गोद में है।

दोहा 9.

अर्थ:- संत कबीर कहते है की उन्हें ऐसा कोई नहीं मिला जो उन्हें उपदेश दे और संसार के सागर में डूबते हुए इन संसारी प्राणियों को केस पकड़ कर उन्हें बाहर खींच लें।

दोहा 10.

अर्थ:- एक अच्छे इंसान को भले हो करोडो दुष्ट लोग मिले, वह अपने अच्छे स्वाभाव को नहीं छोड़ता। चन्दन के पेड़ से सांप लिपटे रहते है पर वो पेड़ कभी अपनी नम्रता/ठंडक नहीं छोड़ता।

दोहा 11.

अर्थ:- कबीर कहते है की इंसान का तन पक्षी जैसा होगया है, जहा मर्ज़ी करे वह उड़ जाता है। इंसान जैसी संगत में रहता है वैसा ही फल पता है।

दोहा 12.

अर्थ:- तन पर जोगी वस्त्र सब पहनते है पर मन से कोई योगी बनता है? यदि मन से योगी होजाये तो सारी सिद्धि प्राप्त होगी।

दोहा 13.

अर्थ:- यहाँ कबीर कहते है की ऐसा धन कमाओ जो आगे काम आये, यानि अच्छे कर्म जो ज़िन्दगी के बाद काम आये। दुनिया की दौलत सर पर पोटली बनाकर जाता हुआ कोई नहीं दिखा और वह काम भी नहीं आएगी।

दोहा 14.

अर्थ:- संसार में मानव की ना मोह माया मरती है ना मन। शरीर ना जाने कितनी बार मर चूका है पर इंसान की इच्छाएं कभी ख़तम नहीं होती ऐसा कबीर कहते है।

दोहा 15.

अर्थ:- कबीर कहते है की हे मानव तू अपनी मन की इच्छाओ को छोड़ दे, तुम सभी इच्छाएं पूरी नहीं कर सकते। यदि से अगर घी निकल आये तो किसीको रूखी रोटी नहीं खानी पड़ेगी।

दोहा 16.

अर्थ:- जब इंसान “मैं” डूब जाता है तब उसे सिर्फ “मैं” दीखता है और प्रभु को नहीं समझ पता। जब गुरु ने ज्ञान का दीपक जलाया तो सारा अज्ञानता का अँधेरा मिट गया।

दोहा 17.

अर्थ:- कबीर कहते है की अज्ञानता की नींद में क्यों सोये हो, क्यों कोई उठकर प्रभु का नाम नहीं जपता। एक दिन तू भी गहरी नींद सोयेगा पर इससे पहले जाग जाओ।

दोहा 18.

अर्थ:- देखते ही देखते अच्छे दिन और अच्छा समय चला गया पर तुमने प्रभु से नाता नहीं जोड़ा। ये तो ऐसा हुआ जैसे खेत चुग कर चिड़िया उड़ गयी और अब किसान बैठकर पछता रहा हो।

दोहा 19.

अर्थ:- रात को सोने में बर्बाद किया और दिन को खाने में बर्बाद किया। ये ज़िन्दगी बहुत कीमती है, कुछ बड़ा नहीं किया तो इसकी कीमत बस एक कौड़ी की है।

दोहा 20.

अर्थ:- यहाँ कबीर ने खजूर के पेड़ की मिसाल दी है, खजूर का पेड़ बड़ा तो होता है पर ना पंछियों को ठीक से छाव दे पता है और उसके फल भी दूर/ऊँचे होते है।

दोहा 21.

अर्थ:- पानी की कीमत हरा पेड़ ही जानता है, सुखी लकड़ी को नहीं समझता की कब पानी बरसा।

दोहा 22.

अर्थ:- जब किसी पत्थर के ऊपर झरमर बरसात होती है तब मिटटी तो भीग कर नरम हो जाती है पर पत्थर वैसा का वैसा ही रहता है।

दोहा 23.

अर्थ:- कहने सुनने के सब दिन चले गए पर ये मन उलझ कर सुलझ ना पाया। यह मन अभी भी चिंतन नहीं करता, आज भी पहले दिन जैसा ही है।

दोहा 24.

अर्थ:- छोटा सा तो जीवन है पर इस जीवन में इंसान बहुत सारे प्रबंधन करने में लगा है।

दोहा 25.

अर्थ:- एक दिन ऐसा ज़रूर जब सबसे बिछड़ना पड़ेगा। हे राजा, हे रानी, हे छत्रपति तुम अभी से सावधान क्यों नहीं हो जाते।

दोहा 26.

अर्थ:- कबीर कहते है की जिस आदमी ने कभी प्रेम/विनम्रता को चखकर उसका स्वाद ना लिया हो वो ऐसा होता है जैसे कोई आदमी किसी सुने या वीरान घर में जाता है वैसे ही वापस चला आता है।

दोहा 27.

अर्थ:- इज़्ज़त, महत्त्व, प्यार, गौरव गुण और स्नेह सब बाढ़ में बह जाते है जब इंसान से कोई कुछ मांग लेता है।

दोहा 28.

अर्थ:- जो जाता है उसे जाने दो तुम अपनी दशा को ना बदलो। केवट की नाव की तरह बहुत लोग आकर तुमसे मिलेंगे।

दोहा 29.

अर्थ:- इंसान के रूप में जन्म लेना दुर्लभ है, यह मौका बार बार नहीं मिलता। एक बार जो फल पेड़ से गिर जाता है वो दोबारा पेड़ पर नहीं जुड़ता।

दोहा 30.

अर्थ:- यह तन कच्चे घड़े जैसा है जिसे तू अपने साथ लिए फिरता है। जिस दिन यह घड़ा फुट जाएगा उस दिन कुछ हाथ नहीं आएगा।

दोहा 31.

अर्थ:- “मैं” “मैं” यह बहुत बुरी बला है, होसके तो इससे निकल कर भागो। दोस्तों, इस अहंकार की अग्नि को कबतक अपने साथ रखोगे, रुई में आग लग जाती है।

दोहा 32.

अर्थ:- कबीर कहते है की जब प्रेम की बरसात उनपर पड़ी तो उनकी अंतरात्मा भी भीग गयी और उनके आसपास का माहौल भी हरा भरा और खुशहाल हो गया।

दोहा 33.

अर्थ:- जिनके घड़े प्रेम और प्रीति से नहीं भरे, जो प्रभु का स्मरण नहीं करते। ऐसे मानव संसार में आकर बेकार है और उनका जीवन व्यर्थ है।

दोहा 34.

अर्थ:- संसार का रास्ता बहुत लम्बा, घर दूर है और रास्ता भयंकर है और रास्ते पर बहुत ठग है। हे मानव, प्रभु के दर्शन कैसे होंगे।

दोहा 35.

अर्थ:- इस शरीर को दिप बनालू, उसमे प्राणो की बत्ती दालु और उसे खून से सिचु। कब होंगे प्रभु के दर्शन।

दोहा 36.

अर्थ:- हे प्रभु, तुम आखों के रास्ते मेरे अंदर समां जाओ, फिर में आखें बंद कर लू। फिर ना में किसी और को देखु और नाही किसी दूसरे को तुम्हे देखने दू।

दोहा 37.

अर्थ:- कबीर कहते है की जहा सिन्दूर का हिस्सा होता है वहा काजल नहीं लगाया जाता। जहा राम विराजमान हो वहा और कोई कैसे आ सकता है।

दोहा 38.

अर्थ:- कबीर कहते है की समुद्र की सीपी प्यास प्यास चिल्लाती रहती है। स्वाति बूँद की आस में उसे पूरा समुंदर एक तिनके की तरह लगता है।

दोहा 39.

अर्थ:- कबीर कहते है की जो जिन घरो में पहले चहल पहल रहती थी, जहा पल पल त्यौहार मनाये जाते थे वे घर अब खाली पड़े है यानि हमेशा एक जैसा समय नहीं रहता।

दोहा 40.

अर्थ:- कबीर कहते है की जिन ऊँचे मकानों पर तुम गर कर रहे हो वो कल ध्वस्त होकर ज़मीन पर लेट जाएंगे और उनपर घर उग जायेगी। अभी जो खिलखिलाता घर का आँगन है वो कल वीरान हो जायेगा।

दोहा 41.

अर्थ:- जन्म और मरण के बारे में सोचकर बुरे कामो को छोड़ दो। जो तेरी मंज़िल की तरफ ले जाए उसी रास्ते का स्मरण कर।

दोहा 42.

अर्थ:- जैसी रखवाली ना करने पर बाहर से आकर चिड़िया खेत चुग जाती है वैसे ही जीवन में सावधानी ना बरतने पर हमें बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

दोहा 43.

अर्थ:- कबीर कहते है की शरीर जैसा देवालय नष्ट होगया, उसकी ईट ईट यानी अंग-अंग काई में बदल गया। इस देवालय को सींचने के लिए प्रभु से प्रेम कर ताकि ऐसा दोबारा ना हो।

दोहा 44.

अर्थ:- कबीर कहते है की यह शरीर लाखो का है जिस पर हीरे जड़े है। यह चार दिन का खिलौना है जो कल नष्ट होजाएग।

दोहा 45.

अर्थ:- यह शरीर नष्ट होने ही वाला है, हो सके तो संभल जाओ और इसे संभाल लो। जो कल करोडो के मालिक थे वो भी इस दुनिया से नंगे हाथ ही गए है।

दोहा 46.

अर्थ:- हमारा शरीर जंगल की तरह है और हमारे कर्म कुल्हाड़ी के समान है। हम अपने आप को ही कुल्हाड़ी से काट रहे है इसपर विचार करो।

दोहा 47.

अर्थ:- इस दुनिया में तेरा दोस्त/साथी कोई नहीं, सब अपने स्वार्थ में बंधे हुए है। जब तक मन में परतीति नहीं आती तब तक अपनी अंतरात्मा की आवाज़ नहीं सुन पाता।

दोहा 48.

अर्थ:- “मैं” के अहंकार में मत फसो, ये सब एक दिन नष्ट हो जाएगा। “मैं” पैरो में पड़ी बेड़िया है और गले में लगी फांसी है।

दोहा 49.

अर्थ:- कबीर कहते है की जीवन की नाव टूटी फूटी है इसमें सब डूब जाते है। जो अपनी इच्छाओ से मुक्त है (हलके है) वो तैर कर पार होजाते है।

दोहा 50.

अर्थ:- हमारा मन सभी चीज़ो को समझता है पर फिर भी वो गुमराह होजाता है। हाथ में दिया लेकर कुंए में क्यों गिर जाते हो।

दोहा 51.

अर्थ:- हमारे हृदय के अंदर ही दर्पण है जो हमें अपना चेहरा दिखा सके लेकिन इच्छाओ में लिप्त हम उसमे अपना मुख नहीं देख पाते। अपना मुख हमें तभी दिखाई देता है जब मन की दुविधाएं दूर हो।

दोहा 52.

अर्थ:- अगर तू अपनी करनी जानता था तोह चुप क्यों रहा? अब क्यों पछता रहा है? बाबुल के पेड़ लगाओगे को आम कैसे खाओगे।

दोहा 53.

अर्थ:- अपने मन की सभी इच्छाओ को छोड़ दो, तुम उसे सम्पूर्ण रूप से पूरा नहीं कर सकते। अगर पानी से घी निकाल आये तो कोई सुखी रोटी क्यों खाये।

दोहा 54.

अर्थ:- ना माया मरती है ना मन, ना जाने शरीर कितनी बार मर गया। आशा, तृष्णा कभी नहीं मरती ऐसा कहते है कबीर।

दोहा 55.

अर्थ:- ऐसा धन जमा करो जो आगे तुम्हारे काम आये। दुनिया की दौलत की पोटली कोई सर पर रखकर नहीं जाता।

दोहा 56.

अर्थ:- अगर किसी झूठे इंसान को कोई झूठा इंसान मिलता है तो उनकी खूब जमती है। अगर किसी झूठे को सच्चा इंसान मिलता है तो स्नेहा तूट जाता है।

दोहा 57.

अर्थ:- ईश्वर के गुण बहुत है और अवगुण कोई नहीं। जब हम अपने दिल में झांकते है तो सभी अवगुण दीखते है।

दोहा 58.

अर्थ:- जब मैं इस दुनिया में बुरे इंसान को ढूंढ़ने निकला तब कोई नज़र आया। जब मैंने अपने अंदर झांक कर देखा तो मुझसे बुरा कोई ना था।

दोहा 59.

अर्थ:- कबीर कहते है की अगर चन्दन के पेड़ के पास यदि नीम के पेड़ हो तो नीम के पेड़ में चन्दन की सुवास आजाती है। बांस का पेड़ अपनी लम्बाई और बड़ेपन के कारण डूब जाता है।

दोहा 60.

अर्थ:- यह संसार काजल की कोठारी की तरह काला और इसके रास्ते में अँधियारा है। पंडितों ने पृथ्वी पर मूर्तियों को स्थापित कर मार्ग का निर्माण किया।

दोहा 61.

अर्थ:- मुर्ख की संगत में ना रहो, मुर्ख लोहे के समान है जो पानी में डूब जाता है। संगत का इतना प्रभाव है की आकाश से एक बूँद केले के पत्ते पर गिरकर कपूर, सिप के अंदर गिरकर मोती और सांप के मुँह में जाकर ज़हर बन जाता है।

दोहा 62.

अर्थ:- अगर आपकी करनी या कार्य उच्च कोटि के नहीं तो ऊँचे कूल में जन्म लेकर क्या फायदा। अगर सोने के कलश में सुरा (मदिरा) भरी है तो साधू उसकी निंदा ही करेंगे।

दोहा 63.

अर्थ:- कबीर कहते है की साधू की संगत कभी निर्फल नहीं होती। चन्दन का पेड़ अगर छोटा भी होता तो कोई उसे नीम का पेड़ नहीं कहता और वो हमेशा सुवासित ही रहता है।

दोहा 64.

अर्थ:- जो लोग जानबूझकर सत्य का साथ छोड़ देते है, भगवन ऐसी सांगत हमें कभी ना देना ताकि हमें सत्य की संगती मिले।

दोहा 65.

अर्थ:- मन मर गया, ममता सब नष्ट हो गयी। अहंकार ने सब नष्ट कर दिया। जो योगी था वो तो चला, अब आसान पर उसकी विभूति रह गयी।

दोहा 66.

अर्थ:- कबीर कहते है की ऐसे पेड़ के निचे आराम करो जो बारह महीने फल देता हो, जो शीतल छाया देता हो और जिसपर पंछी क्रीड़ा करते हो।

दोहा 67.

अर्थ:- मानव का शरीर कच्चा होता है और मन अस्थिर, पर वो उसे स्थिर मानकर काम करता है। इंसान जितना दुनिया में मग्न रहता है, काल उसपर उतना ही हस्ता है।

दोहा 68.

अर्थ:- जब पानी भरने जाते है तो घड़ा पानी में रहता है और जब पानी भरते है तो घड़े के अंदर पानी जाता है। बाहर भी पानी, अंदर भी पानी। जब घड़ा फुट जाता है तो घड़े का पानी दरिया के पानी में मिल जाता है। इसी तरह आत्मा – परमात्मा दोनों एक है और परमात्मा की ही सत्ता है।

दोहा 69.

अर्थ:- तुम कहते हो की कागज़ पर लिखा सच है पर मैं आखों देखि बात में मानता हु। तुम उसे क्यों उलझाकर रख देते हो, जितना सरल रहोगे उतना ही उलझन से दूर रहोगे।

दोहा 70.

अर्थ:- जितना हारना सब मन की भावनाये है। यदि आपक निराश होगये और हार मान ली तो आपकी हार है, और आप मज़बूत रहे और कोशिश करते रहे तो आपकी जीत है। कबीर कहते है की अगर आपको जीत का भरोसा ही नहीं तो आप कैसे जीत पाएंगे।

दोहा 71.

अर्थ:- जब अहंकार था तब मैं ईश्वर से दूर था, जब अहंकार ख़त्म होगया तो ईश्वर का साक्षात्कार होगया। प्यार की गली अति संकरी है, इसमें सिर्फ एक ही रह सकते है।

दोहा 72.

अर्थ:- कबीर कहते है की प्रेम ज्ञान से बड़ा है। यदि मनुष्य ज्ञानी हो पर उसका दिल कठोर और निर्जीव हो तो क्या फायदा। प्रेम की एक छींट मनुष्य को सजीव बना देती है।

दोहा 73.

अर्थ:- साधू की जाती ना पूछो, साधू कितना ज्ञानी है यह महत्वपूर्ण है। साधू की जाती म्यान है और उसका ज्ञान तलवार की धार। तलवार की धार का मोल करो, म्यान को पड़ा रहने दो।

दोहा 74.

अर्थ:- साधू का मन भाव का भूखा होता है, धन का भूखा नहीं होता। जो धन का भूखा हो वो साधू ही नहीं।

दोहा 75.

अर्थ:- बहुत पुस्तके पढ़ी पर मन की शंका दूर ना हुई। कबीर कहते है की किसे समझाऊ की यही तो दुखों का मूल है।

दोहा 76.

अर्थ:- प्रेम खेत में नहीं उगता और नाही प्रेम बाज़ार में बिकता है। चाहे वो राजा हो या प्रजा, आत्म बलिदान से ही प्रेम मिलता है।

दोहा 77.

अर्थ:- कबीर कहते है की सच्चा पीर, गुरु, संत वही है जो दुसरो के दर्द को समझता है। जो दुसरो के दुःख नहीं समझ नहीं सकता वो पीर नहीं काफिर है।

दोहा 78.

अर्थ:- देह संस्कार में मरने वाला जलता है, लकडिया जलती है, उन्हें जलने वाला भी एक दिन जलता है और वहा खड़े देखने वाले भी समय आने पर जलते है। कबीर कहते है की जब सबका अंत यही है तो मैं किसको पुकारू।

दोहा 79.

अर्थ:- बुगले का तन तो उजला होता है पर उसके मन काला और कपट से भरा होता है, इससे अच्छा तो कौआ है जो तन और मन दोनों में काला है और किसीको अपने दिखावे से छलता नहीं है।

दोहा 80.

अर्थ:- कबीर कहते है की इस दुनिया में हमारा अपना कोई नहीं, ना ही हम किसीके है। जैसे नाव किनारे पर पहुंचते ही उसमे सब एक साथ बैठे लोग उतर जाते है और बिछड़ कर चले जाते है वैसे ही हम सब बिछड़ जायेंगे और रिश्ते नाते यही रह जाएंगे।

दोहा 81.

अर्थ:- देह धारण करने का दंड सबको भुगतना पड़ेगा, फर्क इतना है की जो ज्ञानी है वो समझदारी और संतुष्टि से इसे भुगतेगा और अज्ञानी दुखी मन से इसे झेलेगा।

दोहा 82.

अर्थ:- हिरे की परख जोहरी को होती है, शब्दों को परखने/समझने वाला ज्ञानी सज्जन होता है। कबीर के अनुसार जो साधू और ढोंगी के बिच फर्क समझ लेता है उसका गहन गंभीर होता है।

दोहा 83.

अर्थ:- किसी व्यक्ति को अगर परखना हो तो सिर्फ एक ही बार परखो, बार बार परखने की ज़रूरत नहीं। रेत को बार बार छानने पर भी उसकी किरकिराहट दूर नहीं होती।

दोहा 84.

अर्थ:- पतिव्रता औरत अगर शरीर से मैली हो तो भी अच्छी है, चाहे उसके गले में कांच की माला ही क्यों ना हो फिर भी वह अपनी सखियों के बिच सूरज की तेज़ रौशनी के समान चमकती है।

दोहा 85.

अर्थ:- बड़ी बड़ी किताबे पढ़कर ना जाने कितने लोग मर गए पर वे विद्वान् न बन सके। सिर्फ ढाई अक्षर प्रेम के पढ़ कर समझ ले तो आप विद्वान् है।

दोहा 86.

अर्थ:- इस जगत में नेक दिल इंसानो की ज़रूरत है जो जैसी गेहू साफ़ करने वाली सुप की तरह सार्थक को बचा सके और निर्थक को उड़ा दें।

दोहा 87.

अर्थ:- तुम्हारे पाओ के निचे दबाने वाले तिनके तक की कभी निंदा ना करो क्युकी वही तिनका अगर आँख में चला जाता है तो बहुत पीड़ादेय होता है।

दोहा 88.

अर्थ:- धीरज रखने पर ही सबकुछ मिलता है। अगर कोई माली सौ घड़े पानी डालकर पेड़ की सिंचाई करे तो भी फल ऋतु आने पर ही मिलते है।

दोहा 89.

अर्थ:- मोतियों से बानी माला को हाथ में रख कर बार बार घूमने से मन के भाव में कोई बदलाव नहीं आता। कबीर कहते है की मन का मोतियों को फेरो और देखो।

दोहा 90.

अर्थ:- कबीर कहते है की जब मनुष्य दुसरो में दोष देखता है तो हस्ता है, पर उसे अपने दोष याद नहीं आते जिनक ना आदि है ना अंत।

दोहा 91.

अर्थ:- अगर आप मेहनत करते है तो आप कुछ ना कुछ पा ही लेते है, जैसे गोताखोर गहरे पानी में जाकर कुछ न कुछ पा ही लेता है। कुछ लोग डूबने के दर से किनारे पर ही बैठे रहते है और कुछ नहीं पाते।

दोहा 92.

अर्थ:- अगर कोई सही तरीके से बोलना जानता है तो वो बोलने की वाणी को जानता है। इसलिए वो दिल के तराज़ू में तोलकर शब्दों मो मुँह से बाहर आने देता है।

दोहा 93.

अर्थ:- ना तो बहुत ज़्यादा बोलना अच्छा है और नाही बहुत ज़्यादा चुप रहना। जैसे बहुत ज़्यादा बारिश नहीं अच्छी वैसे बहुत ज़्यादा धुप भी नहीं अच्छी।

दोहा 94.

अर्थ:- जो लोग हमारी निंदा करते है उन्हें अपने पास ही रखना चाहिए। वो लोग बिना पानी और साबुन के हमारे स्वभाव को साफ़ करते है।

दोहा 95.

अर्थ:- इंसान को इस संसार में जन्म बड़ी मुश्किल से मिलता है, बार बार नहीं मिलता। जैसे पेड़ से अगर पत्ता जड़ जाये तो वो दोबारा नहीं जुड़ता।

दोहा 96.

अर्थ:- इस नष्ट होजाने वाली दुनिया में कबीर सबके लिए भलाई चाहते है। ना किसी से दोस्ती अच्छी, ना किसी से दुश्मनी।

दोहा 97.

अर्थ:- कबीर कहते है की हिन्दू राम भक्त है और मुसलमान कहते है की हमें रहमान प्यारा है। इसी बात पर दोनों लड़ मरे पर कोई परम सत्य ना जान पाया।

दोहा 98.

अर्थ:- समुंदर की लहर से मोती आकर बिखर गए, बगुला को उसका भेद पता नहीं पर हंस उन्हें चुन-चुन के खा रहा है।

दोहा 99.

अर्थ:- जब गुण को समझने वाले गाहक होते है तो गुण लाखों में बिकते है, पर जब कोई गुण को समझने वाला ना हो तो उसकी कीमत कौड़ियों की होजाती है।

दोहा 100.

अर्थ:- कबीर कहते है की हमारा शरीर ज़हर से भरा हुआ है और गुरु अमृत की खान/भण्डार है। अगर सर काटकर भी गुरु मिल जाते है तो यह सौदा बहुत सस्ता है।

दोहा 101.

अर्थ:- कबीर कहते है की अगर मैं इस पूरी धरती के बराबर कागज बनालू और सारे वृक्ष से कलम और सातों समुंदर के पानी की स्याही बनाकर लिखू तो भी गुरु के गुण लिखे ना जाए।

तो दोस्तों यह थे संत कबीर के दोहे यानि संत कबीर की वाणी। कबीर ने अपने दोहो से हमें किस तरह जीना चाहिए उस पर रौशनी डाली है। हमें कबीर के इस सन्देश को अपने जीवन में उतारकर अपनी जीवन शैली उसी प्रकार बनाई चाहिए।

“काल करे सो आज कर, आज करे सो अब” इस दोहे से हम आपसे ये अनुरोध करते है की आप अभी यह ब्लॉग अपने परिवारजनों और दोस्तों से शेयर करें और उन्हें प्रेरित करें।

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