रहीम के दोहे अर्थ सहित – 30+Sant Rahimdas Ke Dohe

संत रहीम दास जी मुग़ल काल में बादशाह अकबर के समय के महान कवि हैं, इनका पूरा नाम अब्दुर्रहीम खान खाना था। संत रहीम का

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संत रहीम दास जी मुग़ल काल में बादशाह अकबर के समय के महान कवि हैं, इनका पूरा नाम अब्दुर्रहीम खान खाना था। संत रहीम का जन्म 1556 ई. में लाहौर में हुआ था। अपने दोहों और छंदों से सबको दंग करने वाले Sant Rahimdas जिनकी वाणी में चाय में शक्कर जैसी मिठास थी, अपनी मधुर वाणी से जन समुदाय को मंत्र मुग्ध कर देते थे।

अब्दुल रहीम खान यानि रहीम दास जी अकबर के नवरत्नों में से एक थे। सांप्रदायिक सद्भाव और सभी धर्मो को सम्मान देने वाले रहीम बादशाह अकबर के वफादार बैरम खाँ के पुत्र थे, और उनकी माँ का नाम सुल्ताना बेगम था।

Rahim Das जब पैदा हुए थे तब बैरम खाँ की उम्र लगभग 60 वर्ष हो चुकी थी। कलम और तलवार दोनों के धनि रहीम दास मानव प्रेम में विश्वास रखते थे, इन्होने भगवान श्रीकृष्ण के संदर्भ में कई दोहों और कविताओं की रचना की।

संत रहीम ने खुद को “रहिमन” उपनाम से संबोधित किया। इन्होने अपने दोहों, छंदों और कविताओं के द्वारा जन मानस के अंतस को जागृत किया और उन्हें जीवन दर्शन कराया। आप भी महान कवि रहीम दास जी द्वारा रचित सुप्रसिद्ध दोहों को जरूर पढ़े और इनसे प्रेरणा लें, इसलिए मैंने इस लेख में आपको संत रहीम के दोहे अर्थ सहित बताए हैं।

संत रहीम दास के दोहे अर्थ सहित

रहिमन धागा प्रेम का, मत टोरो चटकाय।
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय।

संत रहीम दास कहते है की प्रेम का धागा बड़ा ही नाज़ुक होता है, इसे कभी टूटने ना दो क्युकी दुबारा इसका जुड़ना कठिन है। यदि दोबारा जोड़ने के कोशिश भी की जाती है उसमे गाँठ पड जाती है।

तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति संचहि सुजान।

रहीम दस कहते है की पेड़ अपने फल खुद नहीं खाते और समुंदर अपना पानी खुद नहीं पीते। इसी तरह एक अच्छा इंसान दूसरों के लिए संपत्ति और ज़िन्दगी खर्च करता है।

रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत॥

गिरे हुए इंसानो से ना दोस्ती अच्छी ना दुश्मनी। जैसे कुत्ता चाहे आपको काटे या आपको चाटे, दोनों ही नापसंद होता है।

एकहि साधै सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय॥

एक को साधते है तो दूसरे भी सधते है, सभी को साधने की ज़रूरत नहीं। यदि आप पेड़ के मूल को पानी से सींचते तो फूल और फल सभी को पानी प्राप्त होता है, उन्हें अलग-अलग सींचने की ज़रूरत नहीं।

रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय।

कुछ दिन की संकट कोई बुरी चीज़ नहीं क्युकी संकट समय में आपको कौन अपना है और कौन पराया है यह समझ आ जाता है।

रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।

जब बड़े आये तब छोटो के सामने बड़ो को तर्जी नहीं देनी चाहिए क्युकी जो काम छोटो का होता है उसे बड़े नहीं कर सकते। अगर काम सुई का हो तो वहा तलवार काम नहीं आती।

रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय।

रहीम दास कहते है के मन का दुःख अपने मन में ही रखो तो बेहतर है। तुम्हारा दुःख सुनकर दूसरे इठलाते ज़रूर है पर दुःख बांटकर काम करने वाला कोई नहीं होता।

रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार।
रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार।

रहीम कहते है की अगर आपका की अपना रूठ जाए तो उसे सौ बार मनाइये। मोतियों के माला अगर टूट जाए तो उन मोतियों को बार-बार धागे में पिरो देना चाहिए।

समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात।
सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात।

रहीम कहते है की सही समय आने पर पेड़ पर फल आते है और निश्चित समय पर वह पेड़ झड़ भी जाता है। हमेशा एक जैसा समय नहीं रहता तो दुःख के समय क्यों पछतावा करना।

बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।

रहीम दास कहते है की बात अगर बिगड़ जाती है तो उसे बनाना मुश्किल काम है। एक बार अगर दूध फट जाए तो उसे मथ कर मख्खन नहीं बनाया जा सकता।

जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह।
धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह।

रहीम कहते है की इस शरीर पर जो भी गुज़रे हमें वो सहन करना चाहिए। जैसे इस धरती पर सर्दी, गर्मी और बारिश पड़ती है फिर भी वो उसे सहन करती है उसी तरह हमें अपने जीवन में आने वाली कठिनाइयों को सहन करना चाहिए।

रहीम दास कहते है की प्रेम की गली बहुत ही फिसलन से भरी है, यहाँ चींटी भी फिसल जाये। हम लोग बैल लादकर निकल पड़े है (अहंकार अपने सर पर लादकर कोई प्रेम के मार्ग नहीं चल सकता, वो ज़रूर फिसलेगा।

मथत-मथत माखन रहै, दही मही बिलगाय।
रहिमन सोई मीत है, भीर परे ठहराय।

रहीम कहते है की सच्चा दोस्त वही है जो मुसीबत के समय काम आये, जो मुसीबत में साथ छोड़ जाए वह दोस्त कैसा। मख्खन मथते-मथते रहा जाता है पर मठ्ठा दही का साथ छोड़ देता है।

‘रहिमन’ वहां न जाइये, जहां कपट को हेत।
हम तो ढारत ढेकुली, सींचत अपनो खेत॥

रहीम दास कहते है की ऐसी जगह कभी ना जाओ जहा लोग छल-कपट करें। हम तो कुए से ढेकुली द्वारा पानी खींचकर अपने खेत सींचते है।

जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं।
गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं।

रहीम कहते है की बड़े को छोटा कहने से उसका बड़प्पन काम नहीं हो जाता, जैसे गिरधर को मुरलीधर कहने से उनकी महिमा में कोई कमी नहीं आती।

दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के माहिं।

रहीम कहते है की कौआ और कोयल दोनों रंग में एक सामान होते है पर जब वो बोलते है तब उनकी पहचान होती है। जब वसंत ऋतु आती है तब कोयल की मधुर आवाज़ से दोनों के बिच का अंतर पता चलता है।

वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग।

रहीम कहते है की वो लोग धन्य है जो दूसरों के लिए उपकारी है। महेंदी बाटने वाले के तन पर भी उसका रंग चढ़ जाता है जब वो दुसरो को बाटने जाता है।

छिमा बड़न को चाहिए, छोटेन को उतपात।
का रहिमन हरि को घट्यो, जो भृगु मारी लात॥

उम्र में बड़े लोगो को क्षमा करने वाला स्वाभाव शोभा देता है और छोटो को बदमाशी। छोटे अगर बदमाशी करते है तो बड़ो को उन्हें माफ़ कर देना चाहिए। छोटो की बदमाशी नुकसान देय नहीं होती जैसे कीड़ा अगर लात भी मारे तो कोई नुकसान नहीं।

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय।

रहीम कहते है है की मुसबित के समय सभी ईश्वर को याद करते है पर सुख में कोई उन्हें याद नहीं करता। यदि सुख के समय ईश्वर को याद रखें तो दुःख आएगा ही नहीं।

खैर, ख़ून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे ना दबैं, जानत सकल जहान॥

रहीम दास कहते है की खैर, खून, खांसी, ख़ुशी, दुश्मनी, दोस्ती और शराब का नशा छुपाने से नहीं छुपता, सारे जहाँ को पता चल ही जाता है।

जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय॥

दुनिया में जब लोग तरक्की पर होते है तो वे बहुत इतराते है। शतरंज में जब प्यादा फ़र्ज़ी बन जाता है तब वो टेडी चाल चलने लगता है।

चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह॥

जो लोग दुनिया में ज़्यादा लालच नहीं रखते वो राजाओ के भी राजा है। ऐसे लोगो को कोई चिंता नहीं होती और वे दुनिया से बेपरवा होते है।

जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।

रहीम कहते है की जो लोग गरीबों का साथ देते है वो असल में बड़े लोग है। जैसे सुदामा कहते है की कृष्णा की दोस्ती भी एक साधना है।

जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय॥

रहीम दास कहते है की दीपक और कुपुत्र एक समान है, दोनों पहले तो उजाला करते है पर बढ़ने पर अँधेरा होजाता है।

रहिमन वे नर मर गये, जे कछु माँगन जाहि।
उनते पहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि॥

जो इंसान दूसरों से मांगने जाते है वो मरे हुए है पर उनसे पहले वो लोग मरे हुए है जो मुँह से कुछ नहीं बोलते।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।

रहीम कहते है की खजूर का पेड़ बड़ा होकर भी किसी काम का नहीं। वह पेड़ ना तो पंछियों को चाव दे पाता है और उसके फल भी दूर दिखाई पड़ते है।

रहिमन चुप होए बैठिए देख दिनन के फेर।
जब नीके दिन आइहें बनत न लगिहें देर।।

जब बुरे दिन आये तो उन्हें धैर्यता पूर्वक सेह लेना चाहिए क्युकी अच्छी दिन आने पर बात बनते देर नहीं लगती।

बानी ऐसी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करै, आपहु शीतल होय।

अपने अंदर की इर्षा और अहंकार छोड़कर इस तरह बात करनी चाहिए की जब आप बोले तो सुनने वाले को और आपको, दोनों को अच्छा महसूस हो।

मन मोती अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो ना मिले, कोटिन करो उपाय॥

रहीम कहते है की मन, मोती, फूल, दूध और रस ये सब जब तक अपनी असली स्थिति में रहते है तब तक वे सहज रहते है। यदि ये फैट जाए तो इन्हे दोबारा सामान्य स्थिति में लाना बड़ा ही कठिन है।

रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून।

इस दोहे में रहीम पानी शब्द का उपयोग विनम्रता के लिए कर रहे है। हमेशा विनम्र स्वाभाव अपना चाहिए क्युकी पानी के बिना आटा नरम नहीं हो सकता, मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता और विनम्रता के बिना मानव का कोई मूल्य नहीं।

पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन।
अब दादुर बक्ता भए, हमको पूछत कौन॥

बारिश के मौसम में कोयल और रहीम ने मौन धारण कर लिया। बारिश में तो मेंढक ही बोलते है जिनका कोई मूल्य नहीं, इसका मतलब कुछ इसे मौके होते है जहा गुणवान को चुप रहना चाहिए।

तो दोस्तों, यह थे रहीम दास के दोहे (Rahim Das Ke Dohe) जो हमें हमेशा से प्रेरित करते आये है। यह कुछ प्रसिद्ध संत रहीम के दोहे है जो हमने आपको अर्थ सहित बताये।

रहीम के दोहे हमें अपने जीवन में उतार कर इसपर अमल करना चाहिए। आपको हमारा ये लेख कैसा लगा ये हमें Comment में ज़रूर बताए और इसे अपने दोस्तों से ज़रूर Share करें।

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